ओम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तरः शुचिः।।
* दीप पूजन मंत्रः *
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तुते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तुते॥
भगवान श्री गणेश स्तुति मंत्रः
विश्वेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ! नामाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते !! भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ! विद्याधराय विकटाय च वामनाय, भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते !! नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः ! नमस्ते रुद्रायुपाय करिरुपाय ते नमः!! श्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे! भक्तत्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक!! लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय ! निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा!! त्वां विन्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति, भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति ! विद्याप्रत्यघरेति च ये स्तुवन्ति, तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव !! गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम ! तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम !!
ॐ पितृ देवतायै नमः।
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ऊं ग्राम देवताय नमः, स्थान देवताय नमः, भुमियाल देवताय नमः, लाटू देवताय नमः, घंडियाल देवताय नमः
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मां दुर्गा स्मरण
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
श्री राम वन्दना
आपदामपहर्तार्म दातारं सर्वसम्पदाम | लोकाभिरामम श्री रामम भूयो भूयो नमाम्यहम ||
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय मानसे । रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ||
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाग, सीतास्मारोपितवाम भागम | माणओ महासायक चारुचापम, नमामि रामम रघुवंश नाथम ||
श्री हनुमत् स्तवन
प्रनवऊं पवन कुमार खल बन पावक ग्यान घन। जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियं भक्तं वातंजातं नमामि।
गोष्पदीकृत वारिशं मशकीकृत राक्षसम्। रामायण महामालारत्नं वन्दे नीलात्मजं।
अंजनानंदनंवीरं जानकीशोकनाशनं । कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लंकाभयंकरम् ।
उलंघ्यसिन्धोंः सलिलं सलिलं यः शोकवह्मींजनकात्मजायाः। तादाय तैनेव ददाहलंका नमामि तं प्राञ्जलिंराग्नेयम।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।
आञ्जनेयभतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।
पारिजाततरूमूल वासिनं भावयामि पवमाननंदनम्।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिलम।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं राक्षपान्तकाम्।
श्री हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि-बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।। राम दूत अतुलित बल धामाः
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूँज जनेऊ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वचत
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुम्।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिबुशा सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि संक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगाये।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्रजोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे ।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पर्दै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
संकट मोचन हनुमान अष्टक
बाल समय रवि भक्ष लियो तब तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
रावण त्रास दई सिय को सब राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
बान लाग्यो उर लछिमन के तब प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
रावन जुध अजान कियो तब नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
काज किए बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होए हमारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहिं जात है टारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।
।। दोहा। ।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
जय श्रीराम, जय हनुमान, जय हनुमान।
राम अवतार
भये प्रकट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप निहारी ||
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुज चारी भूषण बनमाला नयन बिसाला सोभा सिन्धु खरारी ||
कह दुई कर जोरी अस्तुति तोरी केही बिधि करों अनंता माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ||
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता सो मम हित लागी जन अनुरागी भयऊ प्रगट श्रीकंता ||
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कौं मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति धीर न रखें।
उपजा जब ग्याना प्रभु मुस्काना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहैं।
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ||
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपानं यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं अवकूपा।
हनुमान आरती
॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥ वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥
॥ आरती ॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ जाके बल से गिरवर काँपे। रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाये ॥ लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे ॥ लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे। लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें। जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे । बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई । तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णम् ॥
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय शिवाय गौरीवदनाब्जवृंदा सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवाय वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवाय यज्ञस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ । शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते
आरती भगवान श्री रामचंद्रजी की
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्। नवकंज लोचन कंज मुखकर कंज पद कन्जारुणम् ।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पपीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम् ।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्। रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम् ।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं ।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम् ।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी । चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...!
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । जग कर्ता जग भरता, जग पालनकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
भगवान विष्णु की आरती ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥ ओम जय जगदीश हरे।